एक अग्रवाल परिवार था। पूरा परिवार कान्हा जी का भक्त था। वो अपने कृष्णा से बहुत प्यार करता था। उन्होंने अपने घर में ठाकुर जी को विराजमान किया हुआ था। अग्रवाल परिवार का एक नियम था।वो लोग कहीं भी बाहर जाते तो अपने ठाकुर जी के सामने माथा टेकते थे, और जब वापिस आते तो भी माथा टेकते थे और अपने कृष्णा का शुक्रिया अदा करते थे। ये काम घर का प्रत्येक व्यक्ति करता था। एक बार घर का छोटा बेटा जो तेरह साल का था,बिना माथा टेके ही बाहर चला गया। बाहर उसने देखा, कि कुछ लड़कों में लड़ाई हो रही है।वो भी वहां खड़ा हो गया। लड़के आपस में लड़ रहे थे।उन लोगों ने उसे (छोटे बेटे को) दूसरी पार्टी का समझकर पकड़ लिया।एक लड़के ने कैंची निकालकर उसके गले पर वार करने शुरू कर दिये। उसने कई वार किये। तब तक उस परिवार का बड़ा बेटा आ गया,और उसे देखकर बाकी के सब लड़के भाग गये।छोटा बेटा बेहोश हो गया था। बड़ा बेटा उसे घर ले आया। उसका खून बहता देखकर उसकी मां घबरा गई। वह अपने घर के मंदिर में ठाकुर जी के चरणों मे बैठकर रोने लगी।तब तक घरवाले छोटे बेटे को हॉस्पिटल ले गये।इधर उसकी मां रोते हुए लडू गोपाल से कह रही थी- ...
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