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श्रीमद भगवद गीता का महत्तम-अर्जुन की गीता

                           श्रीमद भगवद गीता का महत्तम
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श्रीमद भगवद गीता भगवन वासुदेव श्री कृष्णा का शब्दावतार है अर्थात श्री कृष्णा का ही एक स्वरुप है गीता इसलिए गीता को सुनना ,पढ़ना और दुसरे प्राणियों तक इसका प्रचार और प्रसार करना अपने आप में ही कल्याणकारक और पुण्यदायी ही। 
कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
गीताजी का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करे--
           शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
                 विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
           लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
                 वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्रीमद भगवद गीता को पढ़ने और समझने का एक तरीका होता है। गीता के पढ़ने का एक नियम है जिसका अनुसरण करने से मनुष्य को पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। जब भी आप गीता का पाठ करें तब सदैव याद रखे की पहले जिस अध्याय को आप पढ़ना चाहते है सर्वप्रथम उस अध्याय के महत्तम को पढ़े तत्पश्चात उस अध्याय को पढ़े। 
इस प्रकार गीता का अध्ययन करने से आप्को वो आत्म ज्ञान और आत्म संतुष्टि प्राप्त होगी जिसका वर्णन शब्दों में हो पाना असंभव है। भगवद गीता के १८ अध्याय में से प्रतिदिन कम से कम एक अध्याय अर्थात (महत्तम और अध्याय )का पाठ अवश्य करना चाहिए। 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गीता पाठ जनित पुण्य बड़े बड़े पापो का नाश कर देता है और समस्त कुल को घोर नर्क से बचाता है और आने वाली पीढ़ियों के कल्याण में सहायक सिद्ध होता है। 
गीता का पाठ करते समय अपने मन मस्तिक्ष में ये भावना रखनी चाहिए की हमारे हाथो में गीता रूपी कृष्ण है और हमारी जिव्या पे महादेवी माता सरस्वती का निवास है और स्वयं भगवन कृष्ण और विद्या की देवी सरस्वती का आशीर्वाद हमको प्राप्त हो रहा है।  इस भावना के साथ गीता का पाठ करना फलदायी होता है। 

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