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भगवद गीता: आध्यात्मिक ज्ञानोदय के लिए एक मार्गदर्शिका

भगवद गीता एक श्रद्धेय आध्यात्मिक पाठ है जिसमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन है। यह हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। भगवद गीता में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। यह प्राचीन पाठ मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेरित करने के लिए जारी है। भगवत गीता का परिचय भगवद गीता एक कालातीत आध्यात्मिक पाठ है जो आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है और हिंदू धर्म में इसका पूजनीय स्थान है। इस पवित्र ग्रंथ में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। भगवद गीता मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेर

हनुमान चालीसा का अर्थ और महत्व समझे

हनुमान चालीसा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख देवता, भगवान हनुमान को समर्पित एक श्रद्धेय भजन है। यह शक्तिशाली भजन भक्तों के लिए गहरा अर्थ और महत्व रखता है, क्योंकि यह भगवान हनुमान के गुणों और गुणों को समाहित करता है। इस ज्ञानवर्धक मार्गदर्शिका में, हम हनुमान चालीसा के छंदों के पीछे के रहस्यों का पता लगाएंगे और हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता में इसके महत्व को समझेंगे।

हनुमान चालीसा का परिचय

हनुमान चालीसा एक पवित्र स्तोत्र है जिसका हिंदू संस्कृति में बहुत महत्व है। यह भगवान हनुमान को समर्पित है, जो शक्ति, भक्ति और वफादारी के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं। इस भजन में 40 छंद हैं, जिनमें से प्रत्येक में भगवान हनुमान के विभिन्न गुणों और उपलब्धियों का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्त को आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक विकास मिल सकता है। इस परिचय में, हम हनुमान चालीसा की उत्पत्ति और महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिससे इस श्रद्धेय भजन की गहरी समझ के लिए मंच तैयार होगा।

हनुमान चालीसा का इतिहास और उत्पत्ति

हनुमान चालीसा की उत्पत्ति भारत में 16वीं शताब्दी में देखी जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना महान संत और कवि तुलसीदास ने की थी। तुलसीदास भगवान राम के भक्त थे और भगवान हनुमान के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी। उनकी भक्ति से प्रेरित होकर, तुलसीदास ने भगवान हनुमान के प्रति अपने प्रेम और प्रशंसा को व्यक्त करने के साधन के रूप में हनुमान चालीसा लिखी।
इस भजन ने वर्षों में लोकप्रियता हासिल की और हिंदू घरों और मंदिरों में प्रमुख बन गया। इसका पाठ दुनिया भर में लाखों भक्तों द्वारा किया जाता है, जो हनुमान चालीसा के छंदों का जाप करने से मिलने वाली शक्ति और आशीर्वाद में विश्वास करते हैं।
हनुमान चालीसा का महत्व भगवान हनुमान की उपस्थिति और आशीर्वाद का आह्वान करने की क्षमता में निहित है। प्रत्येक श्लोक भगवान हनुमान के चरित्र के एक अलग पहलू का वर्णन करता है, जो उनकी ताकत, साहस और भगवान राम के प्रति अटूट भक्ति पर प्रकाश डालता है। हनुमान चालीसा का पाठ करके भक्त अपने जीवन में सुरक्षा, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास चाहते हैं।
निम्नलिखित अनुभागों में, हम हनुमान चालीसा के छंदों का विस्तार से अध्ययन करेंगे, प्रत्येक पंक्ति के पीछे के गहरे अर्थ और प्रतीकवाद को उजागर करेंगे। चाहे आप भगवान हनुमान के कट्टर अनुयायी हों या इस पवित्र भजन के महत्व के बारे में उत्सुक हों, यह मार्गदर्शिका आपको हनुमान चालीसा की व्यापक समझ प्रदान करेगी।

श्लोकों और उनके प्रतीकों को समझना

हनुमान चालीसा एक शक्तिशाली भजन है जिसमें 40 छंद हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा प्रतीकवाद और महत्व है। इस खंड में, हम इन छंदों के पीछे के गहरे अर्थों पर गौर करेंगे, उनके प्रतीकवाद और संदेशों की खोज करेंगे।
हनुमान चालीसा की पहली पंक्ति "श्री गुरु चरण सरोज राज" वाक्यांश से शुरू होती है, जिसका अनुवाद है "मैं अपने गुरु के चरण कमलों को नमन करता हूं।" यह श्लोक आध्यात्मिक शिक्षक या गुरु से मार्गदर्शन और ज्ञान प्राप्त करने के महत्व का प्रतीक है।
जैसे-जैसे हम छंदों के माध्यम से आगे बढ़ते हैं, हमें भगवान हनुमान की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन मिलता है, जैसे कि उनका सुनहरा रंग और उनके आकार का विस्तार करने की उनकी क्षमता। ये वर्णन उनकी दिव्य प्रकृति और भौतिक सीमाओं को पार करने की उनकी क्षमता का प्रतीक हैं।
छंद भगवान हनुमान की भगवान राम के प्रति अटूट भक्ति को भी उजागर करते हैं। वे महाकाव्य रामायण में उनकी भूमिका का वर्णन करते हैं, जहां उन्होंने भगवान राम की पत्नी सीता को राक्षस राजा रावण के चंगुल से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह प्रतीकवाद किसी की आध्यात्मिक यात्रा में निष्ठा, साहस और निस्वार्थता के महत्व पर जोर देता है।
इसके अलावा, हनुमान चालीसा में छंद शामिल हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए भगवान हनुमान के आशीर्वाद का आह्वान करते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे छंद हैं जो बुरी ताकतों से सुरक्षा चाहते हैं, ऐसे छंद हैं जो शक्ति और साहस मांगते हैं, और ऐसे छंद हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रार्थना करते हैं। इनमें से प्रत्येक श्लोक का अपना प्रतीकवाद है और यह जीवन के विभिन्न पहलुओं की याद दिलाता है जिन्हें भगवान हनुमान की भक्ति के माध्यम से बेहतर बनाया जा सकता है।
हनुमान चालीसा के छंदों के पीछे के प्रतीकवाद और गहरे अर्थों को समझकर, भक्त भगवान हनुमान के साथ गहरा संबंध विकसित कर सकते हैं और इस पवित्र भजन को पढ़ने से अधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चाहे आप एक समर्पित अनुयायी हों या केवल हनुमान चालीसा के महत्व के बारे में उत्सुक हों, यह खंड आपको इस कालातीत भजन में निहित गहन शिक्षाओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।

हनुमान चालीसा का जाप करने का महत्व

हनुमान चालीसा का जाप हिंदू पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक प्रथाओं में बहुत महत्व रखता है। माना जाता है कि इस शक्तिशाली भजन के दोहराव से भगवान हनुमान का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि यह भक्तों के लिए शांति, शक्ति और साहस लाता है, जिससे उन्हें जीवन में बाधाओं और चुनौतियों से उबरने में मदद मिलती है।
यह भी माना जाता है कि हनुमान चालीसा का जाप मन और आत्मा को शुद्ध करता है, आंतरिक शांति और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है। इसका पाठ अक्सर संकट के समय या भगवान हनुमान से मार्गदर्शन और सहायता मांगते समय किया जाता है।
इसके अलावा, हनुमान चालीसा को नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से बचने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण माना जाता है। माना जाता है कि इस भजन के छंद भक्त के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाते हैं, जो उन्हें नुकसान से सुरक्षित रखता है।
अपने आध्यात्मिक महत्व के अलावा, हनुमान चालीसा अपनी काव्यात्मक सुंदरता और संगीतमयता के लिए भी पूजनीय है। कई भक्तों को इस भजन के मधुर छंदों को पढ़ने और सुनने में सांत्वना और आनंद मिलता है।
कुल मिलाकर, हनुमान चालीसा का जाप एक गहरा अर्थपूर्ण और परिवर्तनकारी अभ्यास है जो भक्तों को भगवान हनुमान की दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है। यह उन सद्गुणों और गुणों की याद दिलाता है जिन्हें व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा में विकसित कर सकता है, जैसे भक्ति, साहस और निस्वार्थता। चाहे व्यक्तिगत विकास, सुरक्षा, या आध्यात्मिक संबंध के लिए पाठ किया जाए, हनुमान चालीसा दुनिया भर में लाखों भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है।

हनुमान चालीसा का पाठ करने के लाभ और आशीर्वाद

हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ और आशीर्वाद मिलते हैं। सबसे पहले, ऐसा माना जाता है कि यह मन में शांति और स्थिरता लाता है, जिससे व्यक्तियों को तनाव और चिंता से सांत्वना और राहत मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के जाप से उत्पन्न शक्तिशाली कंपन आसपास के वातावरण को शुद्ध करते हैं, जिससे सकारात्मक और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनता है।
इसके अलावा, माना जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्त को दैवीय आशीर्वाद और सुरक्षा मिलती है। भगवान हनुमान को शक्ति, साहस और भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और उनके भजन का जाप करके, भक्त जीवन में बाधाओं और चुनौतियों पर काबू पाने के लिए उनका मार्गदर्शन और समर्थन चाहते हैं।
हनुमान चालीसा की चौपाइयां गहरा आध्यात्मिक महत्व भी रखती हैं। प्रत्येक श्लोक गहन ज्ञान और शिक्षाओं से भरा है, जो भक्तों को उन गुणों की याद दिलाता है जिन्हें वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा में विकसित कर सकते हैं। इन श्लोकों का पाठ और मनन करने से व्यक्ति में विनम्रता, निस्वार्थता और भक्ति जैसे गुण विकसित हो सकते हैं।
इसके अलावा, हनुमान चालीसा के जाप में नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों को दूर करने की शक्ति होती है। यह भक्त के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है, उन्हें नुकसान से बचाता है और उनकी भलाई सुनिश्चित करता है।
इन आध्यात्मिक लाभों के अलावा, हनुमान चालीसा अपनी मधुर और काव्यात्मक सुंदरता के लिए भी जानी जाती है। कई भक्तों को इस भजन के लयबद्ध छंदों को पढ़ने और सुनने में आनंद और प्रेरणा मिलती है, और वे परमात्मा के साथ गहरे संबंध का अनुभव करते हैं।
कुल मिलाकर, हनुमान चालीसा का पाठ आध्यात्मिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर भक्तों को अत्यधिक आशीर्वाद और लाभ पहुंचाता है। यह आध्यात्मिक विकास, सुरक्षा और भगवान हनुमान की दिव्य ऊर्जा के साथ संबंध के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है।

हनुमान चालीसा अर्थ सहित 

हम सभी जानते हैं कि हनुमान चालीसा प्रभु श्री राम भक्त हनुमान को प्रसन्न करने की  एक स्थिति है। हनुमान चालीसा के पाठ से हम सभी भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी महाराज के श्री चरणों में अपनी-अपनी अर्जिया लगाते हैं परंतु क्या हमने कभी हनुमान चालीसा के अर्थ को समझने का प्रयास किया है क्योंकि ज्यादातर साधक हनुमान चालीसा पढ़ते जरूर हैं पर उन्हें उनका अर्थ नहीं पता होता क्योंकि वह केवल एक रटाई हुवी विद्या के अनुसार ही हनुमान चालीसा का पाठ करते चले जाते हैं जिसका उन्हें पर्याप्त रूप से फल प्राप्त नहीं होता। जब हम हनुमान चालीसा के अर्थ को समझकर उसका पाठ करते हैं तो भगवान श्री हनुमान जी महाराज प्रसन्न होते हैं और हम पर अपनी कृपा करते हैं। आइए हम सब मिलकर हनुमान चालीसा के दिव्य अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं। 

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥

《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥

《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।

महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥

《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।

हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥

《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।

शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥

《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।

विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥

《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥

《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥

《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।

भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥

《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।

लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥

《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥

《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥

《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥

《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥

《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥

《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥

《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।

दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥

《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥

《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥

《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।

भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।

नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥

《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।

संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।

सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥

《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥

《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।

साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥

《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।

1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।

2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।

3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।

4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।

5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।

6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।

7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।

8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।

राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥

《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।

अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥

《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।

और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।

संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥

《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।

जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥

《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥

《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।

तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे श्री राम भक्त, आप श्री राम , माता सीता और लक्ष्मण जी सहित मेरे हृदय मे निवास करें। 

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