भगवद गीता एक पवित्र ग्रंथ है जो जीवन, आध्यात्मिकता और आत्म-प्राप्ति में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस प्राचीन ग्रंथ को पढ़ने और अध्ययन करने से व्यक्ति जीवन में अपने उद्देश्य और अर्थ की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में, हम भगवद गीता को पढ़ने के विभिन्न लाभों का पता लगाएंगे और यह जीवन के प्रति किसी के दृष्टिकोण और दृष्टिकोण को कैसे बदल सकता है। आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और बुद्धि प्राप्त करें
भगवद गीता पढ़ने के प्रमुख लाभों में से एक आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और ज्ञान प्राप्त करने का अवसर है। यह पवित्र पाठ आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं पर गहन शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें स्वयं की प्रकृति, आत्म-प्राप्ति का मार्ग और जीवन का अंतिम लक्ष्य शामिल है। भगवद गीता के श्लोकों में तल्लीन होकर, पाठक आध्यात्मिक अवधारणाओं और सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक सार्थक और पूर्ण आध्यात्मिक अभ्यास विकसित करने की अनुमति मिलती है। भगवद गीता द्वारा प्रदान किया गया ज्ञान व्यक्तियों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन कर सकता है और उन्हें जीवन की चुनौतियों और जटिलताओं को अधिक स्पष्टता और उद्देश्य के साथ नेविगेट करने में मदद कर सकता है। आंतरिक शांति और शांति पाएं
भगवद गीता पढ़ना एक परिवर्तनकारी अनुभव हो सकता है जो आंतरिक शांति और शांति की ओर ले जाता है। इस पवित्र पाठ की शिक्षाएँ दैनिक जीवन की उथल-पुथल के बीच आंतरिक शांति कैसे प्राप्त करें, इस पर मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। स्वयं की प्रकृति और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझकर, पाठक आंतरिक शांति की भावना पैदा कर सकते हैं जो बाहरी परिस्थितियों से परे है। भगवद गीता तनाव को प्रबंधित करने, चुनौतियों पर काबू पाने और जीवन में संतुलन खोजने के लिए व्यावहारिक ज्ञान और तकनीक प्रदान करती है। इसकी गहन शिक्षाओं के माध्यम से, पाठक शांति और शांति की गहरी भावना की खोज कर सकते हैं, जिससे उन्हें जीवन के उतार-चढ़ाव को अनुग्रह और समता के साथ नेविगेट करने की अनुमति मिलती है।
नैतिकता और नैतिकता की एक मजबूत भावना विकसित करें
भगवद गीता पढ़ने के जीवन बदलने वाले लाभों में से एक नैतिकता और नैतिकता की मजबूत भावना का विकास है। यह पवित्र पाठ धार्मिकता के सिद्धांतों और सदाचारी जीवन जीने के महत्व पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। भगवद गीता की शिक्षाओं का अध्ययन करके, पाठक ईमानदारी, करुणा और निस्वार्थता जैसे नैतिक मूल्यों की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं। ये शिक्षाएं व्यक्तियों को अपने दैनिक जीवन में अधिक नैतिक विकल्प चुनने और एक मजबूत नैतिक दिशा विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। अपने कार्यों को इन सिद्धांतों के साथ जोड़कर, पाठक अधिक संतुष्टि और उद्देश्य की भावना का अनुभव कर सकते हैं, जिससे वे अधिक सार्थक और पूर्ण जीवन जी सकेंगे।
आत्म-चिंतन और आत्म-खोज को बढ़ाएं
भगवद गीता पढ़ने का एक और जीवन बदलने वाला लाभ आत्म-चिंतन और आत्म-खोज में वृद्धि है। यह प्राचीन पाठ पाठकों को अपने विचारों, विश्वासों और मूल्यों की गहराई में जाने और अपने स्वयं के कार्यों और प्रेरणाओं पर सवाल उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है। आत्मनिरीक्षण और आत्म-विश्लेषण के माध्यम से, पाठक अपनी शक्तियों, कमजोरियों और इच्छाओं की स्पष्ट समझ प्राप्त कर सकते हैं। आत्म-प्रतिबिंब की यह प्रक्रिया व्यक्तिगत विकास और आत्म-सुधार की ओर ले जा सकती है, क्योंकि व्यक्ति अपने व्यवहार के पैटर्न के बारे में अधिक जागरूक हो जाते हैं और अपने वास्तविक स्वरूप के साथ खुद को संरेखित करने के लिए सचेत विकल्प चुन सकते हैं। भगवद गीता की शिक्षाओं की खोज करके, पाठक आत्म-खोज की यात्रा पर निकल सकते हैं और पूर्णता और ज्ञानोदय की दिशा में अपने स्वयं के अनूठे मार्ग को उजागर कर सकते हैं। परमात्मा के साथ गहरा संबंध विकसित करें
भगवद गीता को पढ़ने से परमात्मा के साथ गहरा संबंध विकसित करने में मदद मिल सकती है। यह पवित्र ग्रंथ आध्यात्मिकता और परमात्मा की प्रकृति में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह कर्म, धर्म और शाश्वत आत्मा जैसी अवधारणाओं की पड़ताल करता है, एक धार्मिक और पूर्ण जीवन जीने के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करता है। भगवद गीता की शिक्षाओं में डूबकर, पाठक अपनी आध्यात्मिक यात्रा की गहरी समझ विकसित कर सकते हैं और परमात्मा के साथ एक मजबूत संबंध बना सकते हैं। यह संबंध शांति, उद्देश्य और पूर्णता की भावना ला सकता है, क्योंकि व्यक्ति खुद को एक उच्च शक्ति के साथ जोड़ते हैं और ब्रह्मांड में व्याप्त अनंत ज्ञान और प्रेम का लाभ उठाते हैं। भगवद गीता को पढ़ना एक परिवर्तनकारी अनुभव हो सकता है, जिससे व्यक्तियों को अपनी आध्यात्मिक प्रैक्टिस को गहरा करने और परमात्मा के साथ संबंध की गहन भावना का अनुभव करने की अनुमति मिलती है।
न्याय प्राप्त न होने पर गीता युद्ध करने की ही आज्ञा देती है; किन्तु राग-द्वेषरहित होकर समभाव से युद्ध करना चाहिए। भगवान अर्जुन से कहते हैं-
सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि || (गीता २/३८)
‘जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान समझकर उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तू पापको नहीं प्राप्त होगा |’
इसमें कैसी अद्भुत अलौकिक धीरता, वीरता, गम्भीरता और कुशलता का रहस्य भरा हुआ है |
फल, आसक्ति, अहंता, ममता से रहित होकर संसार के हित के उद्देश्य से कर्तव्य-कर्म करना गीता का उपदेश है | गीतामें बताए हुए ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग-सब साधनों का प्रधान उद्देश्य यह है कि सबका परम हित हो |
इस उद्देश्य से स्वार्थ और अभिमान से रहित होकर सम्पूर्ण प्राणियों के साथ त्याग, समता और उदारतापूर्वक प्रेम और विनययुक्त व्यवहार करना चाहिए | उच्चकोटि के साधक की भी समता कसौटी है ( देखिये गीता २/१५, ३८; ४८) एवं सिद्ध पुरुष की भी कसौटी समता है (देखिये गीता ५/१८-१९; ६/८-९; १२/१८-१९; १४/२४-२५) | अतः सम्पूर्ण क्रियाओं, पदार्थों, भावों और प्राणियों में समभाव रखना- यह गीता का प्रधान उपदेश है |
गीता में सभी बातें युक्तियुक्त हैं | गीता का सिद्धांत है कि न अधिक सोये, न अधिक जागे, न अधिक खाये और न लंघन ही करे अर्थात सब कार्य युक्तियुक्त करे, क्योंकि उचित भोजन और शयन न करने से योग की सिद्धि नहीं होती | इसी से भगवानने कहा है-
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा || (गीता ६/१७)
‘दुखों का नाश करनेवाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार करनेवालेका, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करनेवाले का और यथायोग्य सोने तथा जागनेवाले का ही सिद्ध होता है |’
गीता में सात्त्विक, राजस्, तामस, क्रिया, भाव और पदार्थ का वर्णन किया गया है | उनमें सात्त्विक धारण करने के लिए और राजस-तामस त्याग करने के लिए कहा गया है |
यद्यपि उत्तम आचरण और अंतःकरण का उत्तम भाव-दोनों को ही गीता ने कल्याण का साधन माना है, किन्तु प्रधानता भाव को दी गयी है |
इस तरह अनेक प्रकार के उत्तम-उत्तम रहस्य युक्त एवं महत्त्वपूर्ण भाव गीता में भरे हुए हैं | हमलोग धन्य हैं, जो हमें अपने जीवनकाल में गीता –जैसा सर्वोत्तम ग्रन्थ देखने-सुनने और पढ़ने-पढ़ाने के लिए मिल रहा है | हमें इस सुअवसर से लाभ उठाना चाहिए-गीता का तत्परता के साथ श्रद्धा-प्रेमपूर्वक अध्ययन करना चाहिए |
गीता का अध्ययन करने वाले को चाहिए कि वह उसे बार-बार पढ़े, हृदयंगम करे और मनमें धारण करे एवं उसके प्रत्येक शब्द का इस प्रकार मनन करे कि वह उसके अंतःकरण में प्रवेश कर जाय |
भगवान के शरण होकर इस प्रकार अध्ययन करने से भगवत्कृपा से गीता का तत्त्व-रहस्य सहज ही समझ में आ सकता है, फिर उसके विचार और गुण तथा कर्म स्वयमेव गीता के अनुसार ही होने लगते हैं | गीता के अनुसार आचरण हो जाने से मनुष्य के गुण, आत्मबल, बुद्धि, तेज, ज्ञान, आयु और कीर्ति की वृद्धि होती है तथा वह परमपद स्वरुप परमात्मा को प्राप्त हो जाता है |
परम श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका ( सेठ जी)
‘गीता पढ़ने के लाभ’ पुस्तक से, कोड नं०३०४ गीताप्रेस गोरखपुर
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