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भगवद गीता: आध्यात्मिक ज्ञानोदय के लिए एक मार्गदर्शिका

भगवद गीता एक श्रद्धेय आध्यात्मिक पाठ है जिसमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन है। यह हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। भगवद गीता में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। यह प्राचीन पाठ मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेरित करने के लिए जारी है। भगवत गीता का परिचय भगवद गीता एक कालातीत आध्यात्मिक पाठ है जो आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है और हिंदू धर्म में इसका पूजनीय स्थान है। इस पवित्र ग्रंथ में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। भगवद गीता मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेर

गीता जयंती विशेष


Image Credit Goes To Wikimedia Commons & Raji srinivas
श्रीमद भगवद गीता की जय।  भगवान् श्री कृष्ण की जय। हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष के दिन गीता जयंती मनाई जाती है और इसी दिन मोक्षदा एकादशी को भी मनाया जाता है। यह मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान प्रदान किया था।
गीता साक्षात भगवान श्रीकृष्ण की शब्दावर कही गई है अर्थात गीता को भगवान श्री कृष्ण का शब्द अवतार माना गया है। श्रीमद भगवत गीता में कुल 18 अध्याय हैं जिनमें से पहले 6 दिनों में कर्मयोग , अगले 6 अध्यायों में ज्ञान योग और अंतिम के 6 अध्यायों में भक्ति योग का उपदेश मिलता है। 
गीता एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जिसकी मान्यता समस्त विश्व में है अर्थात समस्त विश्व में इसे स्वीकारा है। आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व जब भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था उस वक्त जब कौरव और पांडव के बीच भीषण युद्ध होने जा रहा था तो युद्ध के समय जब अर्जुन के मन में मोह माया विवश विचार उत्पन्न होने लगे और उसने युद्ध करने से मना कर दिया तब उसको मोह माया से दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उसे गीता का ज्ञान दिया था। 
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन सर्वप्रथम इस ज्ञान को मैंने सूर्य को दिया था उसके बाद कुछ समय से यह ज्ञान संसार में लोप हो गया था पर आज तू मेरा अत्यंत प्रिय मित्र सखा और भक्त है इसलिए आज तेरे अज्ञान को दूर करने के लिए मैं यह ज्ञान तुझे दे रहा हु।
 भगवान विष्णु के कितने अवतार हुए उन सब में केवल कृष्णावतार ही एक ऐसा अवतार था जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने गीता सुनाते वक्त इस बात को स्पष्ट रुप से कहा की हे अर्जुन मैं ही भगवान हु और कोई दूसरा भगवान नहीं है। 
सब धर्मो के भेद को भूलकर एक मेरी शरण में आ जा मैं तेरा उद्धार कर दूंगा। गीता जयंती विशेष रूप से भारत वर्ष में मनाई जाती है साथ ही साथ दुनिया के विभिन्न देशों में गीता जयंती के पर्व को स्पष्ट रुप से मान्यता प्रदान की जाती है क्योंकि गीता में जिन विचारों को भगवान श्री कृष्ण बताया है ,जिन उपदेशो को दिया है उनसे मानव समाज के हर समस्या का समाधान निकल सकता है। 
गीता जयंती के दिन गीता को अवश्य पढ़ना चाहिए। गीता के 18 अध्याय हैं उनमें से हर एक अध्याय को पढ़ने का अपना एक अलग महत्व है। 
जब भी गीता का अध्याय पढ़ें तो गीता के अध्याय को पढ़ने से पूर्व उसके महत्व को अवश्य पढ़ना चाहिए। 18 अध्याय अर्थात 18 अध्यायों के 18 महत्व हैं। 
भगवत गीता में तो यह बात स्पष्ट रुप से कही गई है ,भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन मेरे और तेरे बीच हुए संवाद को जो भी मनुष्य पढ़ेगा या पढ़ कर दूसरों को सुनाएगा व श्रवण करेगा या श्रवण करने वाले श्रोताओं को समझाएगा और सुनाएगा वह मेरा अत्यंत प्रिय सखा होगा वह मेरा अत्यंत प्रिय भक्त होगा उससे अधिक प्रिय मुझे इस संसार में और कुछ नहीं होगा। 
गीता के महत्व के बारे में कथाओं में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि यदि गीता के 1 अध्याय का भी प्रतिदिन पाठ किया जाए या फिर कोई अगर एक अध्याय न पढ़ सके तो केवल एक श्लोक को पढ़ लिया जाए , एक श्लोक को भी न पढ़ सके तो आधे श्लोक को और अगर आधे श्लोक  को भी न  पढ़ सके तो केवल एक शब्द को जो की किताब में लिखा है और भगवान कृष्ण को याद कर लिया जाए तो वह भी भक्त सुशर्मा के समान मुक्त हो जाता है क्योंकि सुशर्मा एक ऐसा मनुष्य था जिसको गीता के ज्ञान की वजह से मुक्ति मिली थी। 
जब आप  गीता पढ़ेंगे तो सुशर्मा नामक भक्त की कथा आपको उसमें दिखाई देगी जिसको पढ़ के आप गीता के महत्व को समझ सकेंगे। 
गीता जयंती के ही दिन मोक्षदा एकादशी भी पड़ती है। मोक्षदा एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली होती है। मोक्षदा  एकादशी के विषय में पौराणिक कथाओं में यह प्रमाण मिलता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से जो पित्र पित्र लोक में है या नरक में है वह सब मुक्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनुष्य जो भी एकादशी का व्रत पूरे तन मन धन से करता है और भगवान विष्णु को नमन करके विधान पूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान करके इसका पालन करता है वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। 

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