Skip to main content

Featured

भगवद गीता: आध्यात्मिक ज्ञानोदय के लिए एक मार्गदर्शिका

भगवद गीता एक श्रद्धेय आध्यात्मिक पाठ है जिसमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन है। यह हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। भगवद गीता में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। यह प्राचीन पाठ मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेरित करने के लिए जारी है। भगवत गीता का परिचय भगवद गीता एक कालातीत आध्यात्मिक पाठ है जो आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है और हिंदू धर्म में इसका पूजनीय स्थान है। इस पवित्र ग्रंथ में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। भगवद गीता मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेर

सुदर्शन चक्र के प्राकट्य की अद्भुत और दुर्लभ कथा

  सुदर्शन चक्र 

Image Credit Goes To Wikimedia Commons
भगवन विष्णु अर्थात जगत के पालनहार, जो समय समय पर धर्म की पुनर्स्थापना के लिए धरती पर अवतरित होते रहते है। भगवन विष्णु ,हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओ में से एक है अर्थात ब्रम्हा ,विष्णु और महेश। 
पौराणिक ग्रंथो में बताया गया है की ब्रम्हा जी के हाथ में वेद है और सदाशिव के हाथो में त्रिशूल है और भगवान् विष्णु के हाथो में सुदर्शन चक्र है। पर हम सभी के मन में ये बात अकसर आती है की सुदर्शन चक्र कहा से आया था। आज हम आपको वो अद्भुत कथा सुनाने जा रहे है जिसको सुनकर आप सबो को ज्ञात हो जायेगा की सुदर्शन चक्र का प्राकट्य कब और कैसे हुवा था। 
कथा ----
Image Credit Goes To Wikimedia Commons
भगवान शिव आदि और अनंत है। यानी न कोई इनकी उत्पत्ति के बारे में जानता है और न कोई अंत के बारे में। अनेक ग्रंथों में भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। शिव से जुड़ी अनेक कथाएं पुराणों में बताई गई हैं।
भगवान विष्णु को हर चित्र व मूर्ति में सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण के लिए भगवान् विष्णु को प्रदान किया था। इस संबंध में शिवपुराण की कोटिरुद्र संहिता में एक कथा है। उसके अनुसार-
एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। 
वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला।तब भगवान् विष्णु ने सोचा की समस्त संसार मुझे कमलनयन कहता है अर्थात मेरे नेत्र भी कमल के सामान ही है। 
ये सोच कर भगवान् विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। 
तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। 
इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया और भगवान्  चक्रधारी कहलाएं। 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 

Comments