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भगवद गीता: आध्यात्मिक ज्ञानोदय के लिए एक मार्गदर्शिका

भगवद गीता एक श्रद्धेय आध्यात्मिक पाठ है जिसमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन है। यह हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। भगवद गीता में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। यह प्राचीन पाठ मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेरित करने के लिए जारी है। भगवत गीता का परिचय भगवद गीता एक कालातीत आध्यात्मिक पाठ है जो आत्मज्ञान और आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए गहन ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है और हिंदू धर्म में इसका पूजनीय स्थान है। इस पवित्र ग्रंथ में, भगवान कृष्ण योद्धा अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। भगवद गीता मानव स्थिति और आध्यात्मिक विकास की खोज में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने और प्रेर

श्री चैतन्य महाप्रभु की जगन्नाथ पुरी की यात्रा के दर्शन

श्री चैतन्य महाप्रभु की जगन्नाथ पुरी की यात्रा के दर्शन 
चैतन्य महाप्रभु भगवान् श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक थे और उन्होंने हमें अद्भुत चमत्कारिक मात्रा प्रदान किया "हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे "
चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी जाते हुए मार्ग में अनेक महत्वपूर्ण स्थानों के दर्शन करते जा रहे थे।  उन्होंने गोपीनाथ जी के मंदिर में दर्शन किए जिन्होंने अपने भक्त श्री माधवेंद्र पुरी के लिए खीर चुराई थी तब से गोपीनाथ जी खीर-चोर गोपीनाथ कहलाते हैं। महाप्रभु ने बड़े चाव से इस कथा का आस्वादन किया और   इस बात पर प्रकाश डाला की चुराने की प्रवृति परम चेतना तक में पाई जाती है ,परंतु व्यक्ति भगवान द्वारा प्रदर्शित की गई थी अतः इसकी प्रकृति समाप्त हो गई और इस पर विचार के आधार पर चैतन्य महाप्रभु द्वारा भी यह पूजनीय बन गई कि भगवान तथा उनकी खीर चोरी करने की वृत्ति एक तथा अभिन्न है। 
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कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत में इस रोचक कथा का विस्तार से वर्णन किया है। उड़ीसा  में बालासोर स्थिति रमुना के खीर-चोर गोपीनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद महाप्रभु जगन्नाथ पुरी की ओर चल पड़े और रास्ते में उन्होंने साक्षी गोपाल मंदिर में दर्शन किए जो ब्राह्मण भक्तों के पारिवारिक झगड़े के संबंध में साक्षी रूप में प्रकट हुए थे। उन्होंने साक्षी गोपाल की कथा बड़े चाव से सुनी क्योंकि वे नास्तिकों को यह बताना चाहते थे कि महान आचार्यों द्वारा संस्तुत मंदिरों के पूज्य आचार विग्रह कोरी मूर्तियां नहीं होती ,जैसा कि कम बुद्धि वाले लोग आरोप लगाते हैं। 
मंदिर का विग्रह भगवान का अर्चा अवतार होता है। अतः विग्रह सभी प्रकार के भगवान से अभिनय होता है। वह अपने भक्तों के प्रेम के अनुसार ही प्रभाव दिखाते हैं। साक्षी गोपाल की कथा में दो भगवत भक्तों के बीच पारिवारिक अनबन हो गई तो भगवान ने झगड़ा समाप्त करने तथा अपने सेवकों पर विशेष कृपा दिखाने के लिए वृंदावन से उड़ीसा क्षेत्र विद्यानगर गांव तक अपने अर्चि अवतार के रूप में यात्रा की। वहां से यह विग्रह कटक लाया गया, इसलिए आज भी हजारों तीर्थयात्री जगन्नाथपुरी जाते समय साक्षी गोपाल मंदिर के दर्शन करने आते हैं। 
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चैतन्य महाप्रभु यहां रात्रि भर रुकेऔर फिर उन्होंने जगन्नाथ पुरि के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में नित्यानंद प्रभु ने उनका सन्यास दंड तोड़ डाला ,महाप्रभु उन पर ऊपरी तौर पर कुपित हुए और अपने सारे संगियों को पीछे छोड़कर अकेले ही पूरी चले गए। 
भगवान श्री कृष्ण की जय
श्री चैतन्य महाप्रभु की जय 
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 

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